दोपहर बीत चली थी लेकिन बारिश थी कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी. लड़का अपने कमरे में बैठे बारिश के रुकने की प्रतीक्षा कर रहा था. दो दिन से तेज़ ज़ुकाम और हलके बुखार की वजह से वो घर में कैद था और इन दो दिनों से लगातार बारिश हो रही थी. अपने बालकनी में बैठे बारिश की बूँदों को देख वो सोच रहा था कि कभी जनवरी की बारिश कितनी ख़ास होती थी लेकिन अब तो जैसे जनवरी की बारिश भी कोई मायने नहीं रखती. पिछले कुछ सालों में बहुत कुछ बदल गया था. कई यकीन, कई सपनें टूट गए थे.
एक के बाद एक उसे अपनी हर नाकामी याद आ रही थी. दिन में कई बार उसने सोचा कि घर पर बात कर ले, लेकिन वो जानता था कि घर पर उसकी हलकी बिमारी की खबर भी सबको बेचैन कर देती है. अपने घरवालों को वो अब और कोई तकलीफ नहीं देना चाहता था. वो उस लड़की से भी बात करना चाहता था जो उसके सुख दुःख की साथी थी. लड़के के माँ-बाप, छोटे भाई और बहन के अलावा पूरे दुनिया में एक वही तो थी जो उसकी हर बात समझती थी. लेकिन जाने किस हिचक से या अनजाने डर से वो उसे फोन नहीं कर पाया था.
दो दिन पहले उसकी लड़की से बात हुई थी और तब लड़की का मन बेहद अशांत था. लड़की के परिवार में उन दोनों को लेकर खूब हंगामा हुआ था. लड़की उस रात फोन पर बहुत देर तक रोती रही थी और बस यही दोहराते रही थी – “आई विल डाई विदआउट यू….एंड आई मीन इट!” पूरे दिन लड़के के मन में भी बस यही पाँच शब्द घूमते रहे थे जो लड़की ने दो रात पहले कहे थे और जिन्हें वो तोड़ मरोड़ के पूरे दिन दोहराता रहा था…आई विल डाई…..विदआउट यू…..विदआउट यू…आई विल डाई.शाम होते होते लड़के को उसका अकेलापन, उसकी नाकामी और लड़की के कहे शब्द इस कदर बेचैन करने लगे कि घर में और रुकना संभव न हो सका.
वो बारिश में ही घर से बाहर निकल आया था. बारिश में भीगता हुआ वो सड़कें पार करने लगा. एक जगह से दुसरे जगह वो घूमता रहा. घर से बाहर, सड़कों पर उसे ये तसल्ली थी कि वो अकेला नहीं है. बहुत से लोगों के बीच में वो भी एक है. देर रात तक वो उन भीड़ भरी सड़कों पर इधर उधर निरुद्देश्य घूमता रहा और जब घर लौटा तो ठण्ड से उसका शरीर काँप रहा था. कमजोरी और थकान इस कदर हावी हो गयी थी उसपर कि वो बिना कुछ खाए सो गया.
सुबह जब आँख खुली उसकी, तो उसका पूरा शरीर बुखार से तप रहा था. उसमें इतनी ताकत भी नहीं बची थी कि बिस्तर से उठ कर वो पानी तक पी सके. शाम के अपने पागलपन के लिए वो खुद को कोसने लगा था. रात सड़कों पर घुमने से कुछ देर के लिए जिस अकेलेपन से उसे छुटकारा मिला था उस अकेलेपन ने उसे फिर से जकड़ लिया था. दिन भर के बुरे ख्याल फिर से आने लगे थे. वो ये सोचते ही काँप गया कि इस शहर में वो अकेला है..बिलकुल अकेला. उसे अगर कुछ हो भी जाए तो भी उसकी मदद करने कोई नहीं आने वाला.
उसे अपने एक चाचा की याद आने लगी, जो काफी साल पहले इस दुनिया से जा चुके थे. तब वो काफी छोटा था. उसे बहुत दिनों तक ये लगता रहा था कि चाचा की मौत बुखार से नहीं बल्कि अकेले रहने से हुई थी. वो भी लड़के की तरह अकेले रहते थे. उसी की तरह वो भी समाज के बनाये गए सफलता के पैमाने पर खड़े नहीं उतरे थे और घरवालों के तानों से बचने के लिए कलकत्ता चले गए थे जहाँ वो कोई छोटी मोटी नौकरी करते थे.
उसे बहुत पहले की चाचा की लिखी चिट्ठी याद आई थी जिसमें उन्होंने लिखा था कि इस तरह जीने से तो कहीं बेहतर है मर जाना. उसकी माँ वो चिट्ठी पढ़ के बहुत देर तक रोई थी.लड़के को याद आया कि चाचा भी एक शाम बारिश में भीगे थे और उसी रात उन्हें तेज़ बुखार ने जकड़ लिया था. पूरे दिन तक वो घर में अकेले पड़े रहे थे और कमजोरी की वजह से उन्हें दो बार चक्कर आये थे और वो बेहोश हो गए थे, कोई आसपास था भी नहीं जो उन्हें संभाल पाता…खुद ही होश में आये.
अगले दिन किसी तरह पड़ोस के एक लड़के ने उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवाया था लेकिन तबियत ठीक होने की बजाये और बिगडती चली गयी थी, और एक हफ्ते बाद उनकी मौत हो गयी थी. चाचा की याद आते ही वो घबरा सा गया. बारिश…बुखार और मौत…ये तीनो शब्द उसके मन में घुमने लगे थे. पिछली शाम पढ़ा एक शेर भी ना चाहते हुए उसे याद आ गया
पड़िये गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार / और अगर मर जाईये तो नौहाख़्वाँ कोई न हो”
अचानक आये इस ख्याल से वो घबरा गया. चाचा के आखिरी दिनों को वो अनचाहे ही खुद से जोड़ने लगा था. कमरे में उसे घुटन सी महसूस होने लगी. घर से बाहर निकलने के लिए वो बेचैन हो उठा था. उसने सोचा अगर कुछ होना भी हो तो सड़कों पर हो तो ज्याद बेहतर है. यहाँ अकेले कमरे में कुछ हो भी जाए तो किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा. उसके घरवाले, वो लड़की उसे फोन करते रहेंगे और उन्हें कुछ जवाब नहीं मिलेगा.
वो जोड़ने लगा कि अगर उसे कुछ हो गया तो उसके घरवालों को भी उसके पास पहुचने में कम से कम अट्ठारह घंटे लगेंगे. इन अट्ठारह घंटों में वो ऐसे ही पड़ा रहेगा…अपने कमरे के बिस्तर पर बेजान. उसने सोचा जो लोग अकेले कमरे में मरते हैं वो कितने बदनसीब होते हैं कि आखिरी वक़्त कोई भी उनके पास नहीं होता. ये सोचते ही वो एकदम आतंकित सा हो गया. अकेलेपन के बारे में तो लड़के ने पहले भी कई बार सोचा था लेकिन मौत के बारे में उस दिन उसने पहली बार सोचा था.
सामने टेबल पर रखी लड़की की तस्वीर पर उसकी नज़र गयी तो उसे याद आया पहले जब कभी ऐसी बातें वो मजाक में भी लड़की को कह देता तो वो उससे रूठ जाया करती थी. वो तो शायरी और कविताओं में भी मौत जैसे शब्दों को झेल नहीं पाती थी और चिढ़ कर कहती कि ऐसे नेगटिव शब्दों का इस्तेमाल करने वाले कवि और शायरों को जेल में बंद कर देना चाहिए. पॉजिटिव थिंकिंग की वो खुद को एक मिसाल समझती थी. ऐसा था भी. फुल ऑफ़ लाइफ लड़की थी वो. लेकिन वही फुल ऑफ़ लाइफ लड़की ने उससे कहा था “आई विल डाई विदआउट यू”.
लड़के को बहुत पहले का एक दिन भी याद आया जब वो बहुत बीमार था और लड़की उसकी बीमारी की खबर सुन कर उससे मिलने आई थी. लड़के ने मजाक में कहा था “ये बुखार तो मेरी जान ले लेगी”. ये सुनते ही लड़की ने उसे दो तीन मुक्के जड़ दिए थे और गुस्से में कहा था, ‘बीमार हो और तब भी मार खाने की तुम्हारी तलब शांत नहीं होती’. उस एक छोटे से मजाक से लड़की पूरे दिन रूठी रही थी.
लड़के को अक्सर लगता था कि लड़की के पास कोई जादू का पिटारा है. उस दिन जब वो अपने घर में बीमार पड़ा था तब लड़की ने इरिटेट होकर कहा था, “कितने प्लान बनाये थे हमनें आज के लिए और तुम बिस्तर पर पड़े हो…रुको मैं तुम्हें ठीक करने का कुछ उपाय करती हूँ”. लड़के को इस बात पर हँसी आ गयी थी.. “तुम क्या करोगी? तुम कोई डॉक्टर थोड़े हो?” लड़के ने कहा. लड़की फिर बेपरवाह ढंग से हँसते हुए कहने लगी.. “मैं डॉक्टर नहीं…मैजिशियन हूँ….मैजिशियन. मैं वो भी कर सकती हूँ जो डॉक्टर्स नहीं कर सकते…”
लड़का मुस्कुराने लगा. थोड़ा फ़िल्मी होते हुए उसने कहा “मुझे वैसे दवा खाने की अब क्या जरूरत? तुम जो हो मेरे सामने…देखना मेरी मैजिशियन सब ठीक कर देगी. ये बुखार कहाँ टिक पायेगा मेरी मैजिशियन के सामने? है न? देखना डर के भाग जाएगा बुखार”. लड़की के गुस्से वाले चेहरे पर अब हलकी मुस्कान उभर आई थी..अपने बारे में ऐसी बातें सुनकर वैसे भी उसका चेहरा एकदम खिल जाता था. फिर भी ऐटिटूड दिखाते हुए उसने कहा “मस्का लगा रहे हो मुझे?”
“हाँ बिलकुल…तुम्हें तो मस्का बहुत पसंद है न?” लड़के ने उसे छेड़ते हुए कहा.
“हुहं…व्हाटेवर……” लड़की ने कन्धों को उचकाकर, लड़के के सवाल को गोल कर दिया.
लड़के को लगा जैसे उसके सामने फिर से उसकी वही पुरानी दोस्त खड़ी है जो बात बे बात पर गुस्सा हो जाया करती थी और लड़के को उसे मनाने के लिए फिर कितने जतन करने पड़ते थे. लड़के को लगा जैसे दो दिन का सारा बोझिलपन, अकेलापन और उसके अंदर का भारीपन धीरे पिघलने लगा है. उदासी के बादल उसके चेहरे से तो लड़की को देखते ही छटने शुरू हो गए थे, लेकिन अब उसे लगा जैसे उसकी तबियत भी ठीक है और वो हल्का महसूस कर रहा है. उसे लगा कि ये लड़की सच में उसकी मैजिशियन है जो सब कुछ ठीक कर देती है.
गज़ब का सम्मोहन है इस पोस्ट के शब्दों में ….