हम दोनों की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं थी. वो अक्सर कहती थी मुझसे, देखना हम दोनों के प्यार पर फ़िल्में बनेंगी और किताबें लिखी जायेंगी. वैसे तो हर किसी को लगता है कि उसकी प्रेम कहानी इस दुनिया की सबसे ख़ास कहानी है. लेकिन हमारे मामले में ये थोड़ा सच भी था कि हमारी कहानी किसी रुपहले परदे पर चल रही फिल्म जैसी थी. चाहे वो पहली मुलाकात हो या हम दोनों के ज़िन्दगी में आने वाले उतार-चढ़ाव, ट्विस्ट एंड टर्न.
सब कुछ किसी फिल्म के स्क्रिप्ट सा लगता था. पहली मुलाकात हमारी तो सच में एकदम फ़िल्मी थी.दो जुलाई का दिन था वो. उस साल हमारे शहर में बारिश ही नहीं हो रही थी. जून पूरा सुखा ही रह गया था. मौसम विशेषज्ञ बस अनुमान ही लगाते रहे थे कि बारिश अब हुई कि तब लेकिन बारिश थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं कॉलेज की सीढ़ियों पर बैठा जाने क्या सोच रहा था और लगातार आसमान की तरफ ताके जा रहा था.
तभी वो आई मेरे पास और मेरे बगल में बैठ गयी. कॉलेज की सबसे सुन्दर लड़की जिससे मैं बात करने के मौका ढूँढ रहा था एकदम से पास में आकर बैठ जाए तो कैसा हाल हो जाता है? ठीक वैसा ही मेरा भी हुआ. अचानक से मैं एकदम सकपका सा गया. मेरे उड़े हुए चेहरे को देखकर उसने हलके से मुस्कुरा दिया. फिर आसमान की तरफ देखकर मुझसे जॉन एलिया के स्टाइल में पूछती है -“आसमान में क्या देख रहे हो? कोई रहता है आसमान में क्या? या ये सोच रहे हो कि बारिश कब होगी?” उसके ऐसे अजीब प्रश्न से मैं थोड़ा कन्फ्यूज़्ड हो गया और हड़बड़ी में एक बेमतलब सा जवाब दे दिया “हाँ, बारिश नहीं हो रही यही सोच रहा था”.
वो फिर हँसने लगी. मेरे कंधे पर थपकी देते हुए कहा उसने “घबराओ मत, मैं आ गयी हूँ…बारिश भी आ जायेगी…”मैं समझने की कोशिश करता कि क्या कहा उसने इससे पहले ही जैसा फिल्मों में होता है न, ठीक वैसा ही हुआ. इधर उसके बोलने की देर थी कि उधर ज़ोरों से बरसात शुरू हो गयी. एकदम मुसलाधार. मैं तो एकदम चकित सा होकर उसे बस देखते ही रहा था.वो अपने चेहरे पर एक विजयी मुस्कान लिए कह रही थी मुझसे – “टोल्ड यू”!
फिर जाने कैसा संयोग रहा उसके बाद, कि अगले कुछ सालों तक ये इत्तेफाक बना रहा कि शहर में बारिश के मौसम की पहली बरसात दो जुलाई को ही हुई. मेरे लिए तो ये बस एक इत्तेफाक मात्र था लेकिन उसके लिए ये इत्तेफाक से कहीं ज्यादा था. मुझे याद है एक साल बाद जब हम दोनों अपने मिलने की पहली ऐनवर्सरी शहर के एक गार्डन रेस्टुरेंट में सेलिब्रेट कर रहे थे, ठीक उसी समय बारिश शुरू हुई.
उसने बारिश को देखते ही कहा था – “लो आ गयी बारिश, हमारी और तुम्हारी ऐनवर्सरी सेलिब्रेट करने”. उसके छोटे से, प्यारे से दिमाग में ये बात घुस कर बैठ गयी थी कि हमारे शहर में पहली बरसात दो जुलाई को ही होगी. ना उससे एक दिन पहले ना उससे एक दिन बाद. उसका बस चलता तो वो अखबार में इश्तेहार छपवा देती कि शहर की पहली बारिश का दिन दो जुलाई है.
बारिश के साथ उसके अब्सेशन की वैसे तो बहुत सी वजहें थी, लेकिन ये सबसे बड़ी वजह थी. इसके अलावा हमारे अनगिनत खूबसूरत पल जो बारिश के रहे हैं और जिसे वो “बारिशी मोमेंट्स” का नाम देकर बुलाती है वो भी एक बड़ी वजह थी कि उसे बारिश के महीने से प्यार था. वैसे तो उसके इस “बारिशी मोमेमेंट्स” में कई सारे बेशकीमती पन्ने जुड़े हैं लेकिन एक पन्ना बड़ा ख़ास है.
हम दोनों उस समय अलग अलग शहर में रहते थे और अपने बेहद अजीज दोस्त नितिन की शादी में अपने शहर वापस आये थे. इत्तेफाक भी इतना खूबसूरत था कि नितिन की शादी दो जुलाई को तय हुई थी. वो हमारे मिलने की पाँचवीं ऐनवर्सरी थी. शहर का हाल और बारिश का सिचूएशन एक्जैक्ट वैसा ही था, जैसा जिस साल जब हम पहली बार मिले थे तब था.
दो दिन पहले हमनें प्लान बनाया था मिलने का, लेकिन मैं कुछ जरूरी काम में फँस कर रहा गया था और उसे मैंने कहा था कि शादी वाले दिन मैं पहुँच पाउँगा. वो मुझसे बेहद खफा हो गयी थी. जाने क्या क्या उसने प्लान किया था, शौपिंग का भी प्लान उसने मेरे साथ ही बनाया था और मेरे देर से आने की वजह से उसके सारे प्लानिंग पर पानी फिर गया था. वो मुझसे लड़ बैठी थी.
मैंने उससे पहले से ही कह रखा था कि मेरे साथ चलना शादी में, लेकिन वो नाराज़ थी और उसने ये सजा मेरे लिए मुकर्र की थी कि वो मेरे साथ नहीं जायेगी और शादी में मुझसे मिलेगी भी नहीं. कभी कभी ऐसे ज़ुल्म वो मेरे पर बड़ी बेरहमी से कर दिया करती थी.
मुझे लगा था उसका गुस्सा शादी वाले दिन गायब हो जाएगा. गुस्सा तो गायब हो भी चूका था लेकिन नौटंकियाँ करने में और मुझे सताने में वो उस्ताद थी. शादी वाले दिन उसने मुझे पहले से ही फ़ोन कर दिया था कि वो नितिन के घर के बाहर गेट पर मेरा इंतजार करेगी. मैं वहां ठीक समय पर पहुँच गया था लेकिन वो वहाँ नहीं थी. फिर अगले ही पल उसका फोन आया, “अन्दर आ जाओ ऊपर छत पर दोस्तों की महफ़िल जमी है, वहीं पर हूँ मैं”.
छत तीसरी मंजिल पर थी. वहाँ पंहुचा तो वहाँ स्टीरियो-डेक वाले के सिवाए वहाँ कोई नहीं था. वहाँ से उसे मैंने कॉल किया तो उसने मुझे फिर दोबारा गेट के पास बुला लिया. भागते दौड़ते हुए मैं गेट तक पहुँचा तो वहाँ भी वो नहीं थी. अब तक मैं समझ गया था कि वो मुझे बस सता रही है. उसने आख़िरकार मुझे फोन किया और बस इतना बोल कर फोन काट दिया, “बैड लक…आज तो तुम मेरे दीदार को तरसो बस”.
हालाँकि मुझे उसकी इस बदमाशी से इरिटेट होना चाहिए था लेकिन मैं मन ही मन उसकी इस बदमाशी पर मुस्कुरा रहा था.
गेट पर ही मुझे एक दो दोस्त और मिल गए और उनके साथ मैं घर के अन्दर चला आया. नितिन का घर मेरे लिए कोई नया नहीं था, पहले भी बहुत बार नितिन के घर मैं आ चूका था. अन्दर एक बड़ा सा आँगन था और वहीँ बीच में मंडप लगा था. मैं वहीँ मंडप के एक तरफ बैठ गया.
आखिरार वो सामने से आते दिखी मुझे. चेहरे पर अपनी ट्रेडमार्क शरारती मुस्कान लिए, सारे नखरे और अदा समेटे सामने की तरफ के सीढ़ियों से बाकी औरतों के साथ वो आ रही थी.
वो मंडप के दुसरे तरफ कोने में औरतों के ग्रुप में बैठ गयी. ये उसका एक और जुल्म था मेरे पर. मुझे तड़पाने का वो कोई मौका नहीं छोड़ रही थी. मैंने उसे इशारे से पास आने को कहा. पहले तो उसने मुहँ बिचका के बड़ी बेरुखी से हँस कर मेरी बात को इगनोर कर दिया, फिर उसने मुझे इशारा किया अपने पास आने का. वो जानती थी कि मैं वहां नहीं आऊंगा. मैंने इनकार किया. वो फिर से हँस दी.
उसे बस दूर से देखने के अलावा मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था. अपने सभी लड़की दोस्तों को मैं जी भर कोस रहा था, अभी कुछ देर पहले सब यहीं पर महफ़िल जमाये बैठी थीं लेकिन अब कोई दिख क्यों नहीं रही है. वो होती अगर तो कम से कम उनके जरिये मैं उस तक सन्देश तो पहुँचा सकता.
एक प्यारा सा रोमांटिक गाना डेक में बजने लगा –
तू सुबह का उजाला मेरे वास्ते
तू मेरे वास्ते दिलनशीं शाम है
तेरे दिल में ठिकाना रहे उम्र भर
फिर किसी आशियाने की परवाह नहीं
ऐ मेरी ज़िन्दगी, तू मेरे साथ है
🙂
हम दोनों की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं थी
ज़िंदगी किसी फिल्म से कम होती है क्या…अक्सर…किसी-किसी की…:)
बहुत सुन्दर ..