वे दिन उसके जिंदगी के सबसे बुरे दिन थे.वो बेहद उदास थी.दो महीने हो आये थे और मुझे दूर दूर तक उसके चेहरे पे वो मुस्कुराहट नहीं दिख रही थी जो की पहले हुआ करती थी.मुस्कुराती तो वो अब भी थी, लेकिन एक डुप्लिकेट मुस्कराहट की झलक साफ़ दिखती थी.वे दिन जितने उसके लिए खराब थे, उतने मेरे लिए भी खराब थे.
तीन हफ्ते हो गए थे उससे मिले हुए और उससे ना मिल पाने से थोड़ा सा बेचैन तो मैं था ही.उसकी फ़िक्र भी लगी रहती थी. उसने अपना जन्मदिन भी नहीं मनाया था..मनाती भी कैसे? उसकी दी को गए अभी कुछ ही दिन तो हुए थे.बहुत रिक्वेस्ट करने के बाद एक जनवरी को वो मिलने आने के लिए राजी हुई.
एक जनवरी को घर से निकलना थोड़ा तो मुश्किल रहता है, लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं था की मैनेज नहीं हो पाता.अब उससे मिलने जा रहा हूँ,घरवालों को ये तो बता नहीं सकता था..कैसे रखता अपने रिश्ते की परिभाषा घर वालों के सामने..सिर्फ ये कह देता की वो मेरी अच्छी दोस्त है और मैं उसका ख्याल रखता हूँ(कुछ ज्यादा ही)?एक लड़का और लड़की के बीच इस तरह का सम्बन्ध..घरवाले जरा भी देर नहीं लगाते ये सोचने में की वो मेरी प्रेमिका है, जब की ऐसा कुछ तो उस वक्त नहीं था और जो था वो मैं किसी को समझा नहीं सकता था..इसलिए अपने दोस्त प्रभात के नाम का सहारा लिया घर से निकलने के लिए.
उसने तीन बजे मिलने को बुलाया था.मैं आधे घंटे पहले ही पहुँच गया था.घर में मुझसे रहा नहीं जा रहा था.जब से तीन बजे मिलने का समय तय हुआ था, उस समय से मेरे अंदर एक अजीब उथल पुथल मची थी, अजीब बेचैनी सी थी..वो बेचैनी या उथल पुथल क्यों थी ये मैं उस वक़्त समझ नहीं पाया था. मैं एकटक से रास्ते पे नज़रें लगाए बैठा था. बीच में मेरी नज़रे थोड़ी इधर उधर होने लगी. मैं कभी आर्चीस गैलरी की तरफ देखता, तो कभी सामने स्नैक्स के दुकान पर खड़े कुछ लड़के और लड़कियों को, जो शायद नया साल मनाने आये थे और कोल्ड ड्रिंक्स की पार्टी चल रही थी उनकी.
उन्हें देख मेरा भी कोल्ड ड्रिंक्स पीने का दिल करने लगा. फिर अगले ही पल ये ख्याल आया कि पॉकेट में सिर्फ 20 रुपये ही हैं जिसे आज मैंने गुल्लक से निकाले हैं. इसे मैंने उसके लिए बचा रखे थे. मुझे पता था कि उसे “सैंडविच बेकरी” की पेस्ट्री और समोसे कितने पसंद हैं. वहीँ खड़े खड़े मैं पॉकेट को एक बार फिर से चेक करता हूँ ये कन्फर्म करने के लिए कि वो रुपये मैंने लाये तो हैं न.मैं एकाएक उन रुपये के गुम हो जाने, गिर जाने या चोरी हो जाने के सोच से डर जाता हूँ और फिर उन रुपये को जीन्स के पीछे वाले पॉकेट से निकाल सर्ट के पॉकेट में रख लेता हूँ.
सड़क की तरफ मेरी नज़रें फिर से मुड़ जाती हैं.
अक्सर मेरे साथ ऐसा होता है कि बहुत मामूली सी चीज़ों पर मेरी नज़रें अटकी रह जाती हैं और मैं किसी ख्याल में गुम हो जाता हूँ. उस दिन भी मैं आर्चीस गैलरी के पास खड़ा था और उस दूकान के दरवाज़े के तरफ देख रहा था. लोग तेजी से उस दरवाजे को धक्का दे कर अंदर चले जाते और वो दरवाज़ा खुद ब खुद बंद हो जाता. लोग जितनी तेजी से उस दरवाज़े को धक्का देते, वो उतने धीरे से बंद होता. दूकान में दरवाज़े के पास एक बड़ा सा टेडी बीअर हमेशा रखा रहता था. जब भी दूकान का दरवाज़ा खुलता तो हवा के झोंके से उस टेडी का कान फड़फड़ाने लगता. जाने क्यों मेरी नज़रें सड़क के बजाये उस टेडी पर अटक गयी थी और मैं उसे खरीदने के बारे में सोचने लगा. वो जब भी मेरी साथ आती तो इस टेडी को खरीदने की बात कहती और मैं हर बार दुकानदार से टेडी की कीमत पूछ कर वापस चला आता. लेकिन इस महीने मुझे पैसे बचा कर उस टेडी को खरीदना है, ये मैं सोच ही रहा था कि तभी पीछे से मुझे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ..
“क्या देख रहे हो?” , उसनें कहा. मैं एकदम से चौंक सा गया. इतने देर से मैं तो इसी का इंतजार कर रहा था और ये कब आई मुझे इसका पता भी नहीं चल सका.
“कुछ नहीं…” मैंने कंधे सिकोड़ते हुए कहा. “तुम कब आई?”
“बस अभी अभी, जब तुम अपने ऑब्जरवेशन में व्यस्त थे…..” उसनें मुस्कुराते हुए कहा. मैंने कुछ भी जवाब नहीं दिया और बस चुप रहा. घर से आने से लेकर अभी तक मैंने सोच रखा था की मुझे क्या कहना है, और पुरे रास्ते मैं उन बातों को दोहराता आ रहा था कि इसके सामने आते ही कहीं कोई बात कहना भूल न जाऊं. अक्सर ऐसा होता है मेरे साथ कि जब वो मेरे सामने होती है तो मेरे शब्द मुझे धोखा दे जाते हैं. कुछ ऐसी बातें थीं जिन्हें मैं कभी कह नहीं पाया था. आज भी तय कर के आया था की उसे देखते ही क्या कहूँगा. लेकिन जब उसने मुझे पीछे से छुआ और अपने आने का अहसास दिलाया तब जवाब में मैं बस लड़खड़ा कर रह गया था.
आम तौर पर मेरे पास कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं रहता लेकिन आज उसके पास भी कुछ कहने को नहीं था. हम वहां से निकले और कृष्णा अपार्टमेंट की तरफ चल दिए. अचानक मुझे ये ख्याल आया कि आज पहली दफे ऐसा हुआ है कि वो आर्चीस गैलरी के सामने खड़े रहने के बावजूद अंदर नहीं गयी.वरना पहले तो कुछ खरीदना नहीं भी होता था तब भी एक चक्कर लगा ही लेती थी वो और दरवाज़े पर लगे उस टेडी को देखकर शिकायती अंदाज़ में ये जरूर कहती, “बड़े कंजूस हो तुम…एक टेडी भी नहीं दिलवा सकते मुझे..”
कृष्णा अपार्टमेंट तक आने में हमें कुछ दस पन्द्रह मिनट लगे होंगे और इतने देर तक हम बिना बात किये चल रहे थे.कृष्णा अपार्टमेंट के सीढ़ियों पर हम अक्सर अपना अड्डा जमा देते थे. उस दिन भी हम वहीँ बैठ गए.
उसे आये आधे घंटे से ज्यादा हो गया था लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि बात शुरू कैसे करूँ. उसकी आँखें नम थीं और मेरी हिम्मत थी कि उसकी नज़र से नज़र मिला कर बातें करूँ. मुझे मालुम था कि वो उदास है और उदासी उसके चेहरे पे साफ़ झलक रही थी, लेकिन मुझमे इतना साहस नहीं था कि उसके उदास चेहरे को डेक सकूँ.
हमेशा की तरह इस बार भी बात उसने ही शुरू किया, “कैसा रहा नया साल?..क्या क्या बनाया आंटी ने?”
“ठीक था…”, मैं हमेशा की तरह छोटा सा जवाब देकर चुप हो गया. अक्सर यही होता था कि उसके सवाल जितने लंबे रहते हैं, मेरे जवाब उतने ही छोटे होते थे.
मेरी समझ में बिलकुल भी नहीं आ रहा था कि उससे आगे क्या बात करूँ? दिमाग में कई बातें चल रही थी लेकिन जुबान तक आते आते वो सब बातें मर सी जा रही थी. बहुत मुश्किल से मैंने पुछा “कैसे हैं घर में सब?”
कुछ पल वो खामोश रही और फिर कहने लगी,
“पता है ये पहला साल है की दीदी नहीं हैं नए साल के दिन. आज मैं साधे दस बजे तक सोती रही और किसी ने मुझे जगाया नहीं. माँ तो अबतक चुप सी रहती हैं, और पापा, जो मुझे सात बजे तक सोया हुआ देख चिल्लाने लगते थे, वो भी बाहर बैठे चुपचाप न्यूज़ सुन रहे थे. मुझे एकाएक रोना आ गया. बगल वाले कमरे में रश्मि तो जाग गयी थी लेकिन बिस्तर से उतरी नहीं थी. रजाई में ही बैठी हुई थी…मैं आधे घंटे तक खूब रोयी. माँ ने शायद मुझे देख भी लिया था रोते हुए लेकिन वो कुछ नहीं बोल पा रही थी. शायद वो भी रो रही थी….”
वो खामोश हो गयी. कुछ देर तक सामने वाले बिल्डिंग को देखती रही और आगे फिर कहा,
“तुम्हें तो पता है जब भी मुझे घर से बाहर आना होता है कोचिंग के लिए या किसी काम के लिए के लिए तो माँ हज़ार सवाब पूछती है, लेकिन आज जब मैं आ रही थी तब माँ ने एक बार भी कुछ नहीं पुछा..पापा भी बस इतना कह कर रह गए कि जल्दी आ जाना. जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि जैसे पापा मेरे बाहर जाने से थोड़े खुश हुए, शायद सोचते होंगे की बाहर घूमने से मेरा मन थोड़ा हल्ल्का हो जाएगा…लेकिन तुम ही बताओ बाहर या घर में कोई फर्क पड़ता है क्या..? शुक्र है दीदी, बड़ी मम्मी और दोनों मौसी हैं यहाँ, वरना घर में रहना मेरे बस की बात नहीं होती. शमशान सा घर हो गया है मेरा अब. किसी के चले जाने के बाद कोई भी घर घर नहीं रहता.”
वो इतना कहने के बाद एकदम चुप सी हो गयी..मुझे लगा की अब वो रो पड़ेगी. मैंने बात को दूसरी तरफ मोड़ना चाहा. अपने जेब के पॉकेट से मैंने उसे बीस रुपये निकाल कर दिखाए. वो चौंक सी गयी… कहाँ से आये तुम्हारे पास? परसों ही तो तुम्हारे पूरे पैसे खत्म हो गए थे, और तुम ऑटो लेने के बजाये पैदल घर चले गए थे…, उसनें पूछा.
मैं मुस्कुराने लगा. “गुल्लक से निकाले हैं…”
“कैसे?”
“अरे अपने अपने तरीके हैं…”, मैंने कहा और विस्तार में बताया उसे कि मैंने कौन सा ट्रिक इस्तेमाल कर के मिटटी के गुल्लक से बिना उसे फोड़े पैसे निकाले हैं…
वो आश्चर्य में मेरी तरफ देख रही थी…
“तुम गुल्लक से पैसे भी निकाल लेते हो? क्या क्या कर लेते हो तुम?” उसनें पूछा.
“सब कुछ…तुम्हारी खोयी हुई मुस्कराहट भी ढूँढ ला सकता हूँ मैं…”, मैंने उसकी गालों की चिकोटी काटते हुए कहा.
वो मुस्कुराने लगी…
“देखा… मैंने कहा था न…तुम्हारी मुस्कराहट भी ढूँढ ला सकता हूँ मैं”
वो शरमा सी गयी…
अच्छा बताओ, पेस्ट्री खाओगी न? वरना गुल्लक से बीस रुपये निकालना व्यर्थ चला जाएगा. उसनें हाँ में सर हिला दिया.
मैं अन्दर दूकान में पेस्ट्री लेने चला गया. जब वापस आया देखा वो अपने बैग से खेल रही थी.एक पल के लिए लगा कि जैसे वही पुरानी पागल सी लड़की को मैं देख रहा हूँ, जो बिना बात के अपने बैग से लड़ती रहती थी और उससे बातें करती थी.उसे बैग से खेलते हुए देखना मुझे अच्छा लग रहा था.
मुझे आते देख उसनें तुरंत सवाल किया, “तुम्हारे पास ऑटो के पैसे तो नहीं बचे होंगे, ये लो..”, उसनें अपने बैग से बीस रुपये का नोट मुझे थमाते हुए कहा… “ये ट्रीट आज मेरी तरफ से…”
आम तौर पर ऐसा वो जब भी कहती है तो मैं उसे डांट देता हूँ, लेकिन उस दिन, उस दिन तो मैंने उसकी चोटी को पकड़ कर जोर से खींच दिया था….”पैसे दिखाती है मुझे, स्टुपिड लड़की…”
आह…उसकी हलकी चीख निकल गयी. कोई और दिन होता तो शायद वो मेरी ऐसी हरकत पर मेरी बैंड बजा देती, लेकिन उस दिन वो बस मुस्कुरा कर रह गयी.
कुछ देर तक हम दोनों शांत रहे, बस चुपचाप पेस्ट्री खाते रहे.
“जानते हो, आज मैं बस तुम्हारी वजह से आई थी, वरना मेरा घर से निकलने का कोई मूड नहीं था. लेकिन देखो आज निकल आई घर से तो कितना अच्छा हुआ. कितना हल्का महसूस कर रही हूँ मैं, थैंक्स टू यू…”
वो सच में मुस्कुरा रही थी अब. मुझे लगा जो उदासी सुबह उसके चेहरे पर थी वो धीरे धीरे पिघल रही थी. उदास तो अब भी थी वो लेकिन उसके चेहरे में हलकी चमक सी आ गयी थी.
“सुनो, जब भी तुम्हारा मन करे, जहाँ भी घुमने का, मूवी देखने का…बस मुझे कह देना, मैं आ जाऊँगा. पैसे की चिंता मत करो, एक दो दिन में पॉकेट मनी मिलने वाला है, और तब तक गुल्लक तो है ही…”
मेरी इस बात पर वो हँसने लगी थी. “जानते हो, तुम्हारे साथ मुझे अच्छा क्यों लगता है? तुम औरों की तरह फिलोस्फिकल नहीं होते… तुम बस मुझे सुनते हो और कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाते हो…जो मुझे हल्का कर देता है. तुम्हारे सामने मैं सारे अपने दुःख, बहन के जाने का दर्द भूल जाती हूँ…देखो आज सुबह मैं कितना अजीब महसूस कर रही थी लेकिन अब मन थोड़ा शांत है. थैंक यु सो मच!
“स्वीटहार्ट एनीटाईम एनीथिंग फॉर यू. इतना कह कर मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया. वो मुझे देख मुस्कुराने लगी. ये पहली बार था जब मैंने उसे स्वीटहार्ट बुलाया था, उसे छुआ था, उसे महसूस किया था.
sweet! no more words
मेरे पास इस लेख के लिए शब्द नहीं है भाई!
abhi yaar u r so sweet
No words yaar ki main ye padhne ke baad kyaa feel kiya ???!!!!
🙂
वो कभी बोरिंग रोड नहीं आती थी..
…………………….
अभि, मैं भी कहूँ कि ….. कोई शब्द नहीं है . लेकिन कहीं अन्दर कुछ चला गया . जो अच्छा सा लग रहा है . हाँ !!! नया साल मंगलमय हो .तुम्हारी यादों की हम भी सहभागी बनें .
wow!!!i was completely lost while reading this..
senti sa feel hone laga iske baad….
क्यों तकलीफ दे रहे हो दोस्त ये सब पढ़ा के 🙂
विनायक सेन चिट्ठाचर्चा पर काहे बोलतो?
🙂 🙂 sweet ..itminan se padhne baad men aati hoon
बड़ा अच्छा लगता है….तुम्हारी इन यादो के साथ चलना….बहुत कम लोग होते हैं अभिषेक..जो इतनी अच्छी तरह जो भी महसूस किया… उसे, शब्दों में उतार पाते हैं. स्वीट सी पोस्ट है.
पर एक बात PD के लिए कहूँगी…बड़ा प्यारा सा अहसास हो रहा था..तुम्हारी इस पोस्ट को पढ़ते हुए..{कई नाम ध्यान में आ रहे हैं…पर कोई नाम ,हम भी नहीं देंगे :)} कि अचानक प्रशांत का कमेन्ट पढ़ा…और हंसी आ गयी. इसके बिलकुल straight face से किए मजाक सचमुच हंसा देते हैं 🙂
नए साल की आपको सपरिवार ढेरो बधाईयाँ !!!!
वैसे यु नो अभि !:) जब भी तुम उस पागल लड़की के बारे में लिखते हो तुम्हारा लेखन स्तर पता नहीं कैसे अचानक बहुत ऊपर चला जाता है.एक फ्लो ,एक रिदम सा आ जाता है अब इस का क्रेडिट तुम्हें दूं या उस पागल लड़की को समझ नहीं पा रही हूँ 🙂
सो स्वीट ऑफ यु शिखा दी 🙂
बड़ा अच्छा लगता है….तुम्हारी इन यादो के साथ चलना….बहुत कम लोग होते हैं अभिषेक..जो इतनी अच्छी तरह जो भी महसूस किया… उसे, शब्दों में उतार पाते हैं. स्वीट सी पोस्ट है.
i completly agreeeeeeeee! 🙂
Bahut sundar tareeke se aapne apni feelings ko share kiya hai Abhi ji…. Truely Marvellous
बहुत ही दिल को छू लेने वाला संस्मरण है। बधाई आपको।
kya kahun…itna kahana kafi hoga ki aapke shabdon ne chritro ko aisa jiwant kiya ki mai un sabko mahsus kar rahi hun…aisa laga aapke aur us ladki ke sath wahi main bhi baithi hun…aapko badhai…
nice one
kya bolu main ..log itne acchhe v kyun hote hai jo kisi ki chhoto chhotu yaado ko..unki khushiyon ko dil se lagayr sar aankhon pe uthaye gukte firte hai…bhut touching…bhut sundr…
Great yar. . Marvelous. . .
Abhi ji. . .U r great. . . .
बड़ी गहराई से आपने अपनी भावनाओं को रखा है . पुरानी यादें ताजा हो गई ..
……….शानदार
कैसे मैं आपको इस लेख के लिए सुक्रिया दूँ जितना तारीफ करू कम ही है अभिषेक ध्न्यब्वाद
कंचन केशरी भरनो गुमला 9608463287
कैसे मैं आपको इस लेख के लिए सुक्रिया दूँ जितना तारीफ करू कम ही है अभिषेक ध्न्यब्वाद
कंचन केशरी भरनो गुमला 9608463287
बस……………..:)