
सपनों की दुनिया बड़ी अजीब होती है. हम सपने में अपने हमदम को अपने साथ देखते हैं. फिर आँख खुलने पर वही पुरानी ज़िन्दगी सामने दिखती है. कभी कभी लगता है कि बस सोये रहे और हसीन सपनों में खोये रहे –
कल रात फिर एक सपना देखा मैंने,
चांदनी रात में तुम चुपके से आयीं मेरे पास,
हम दोनों के बीच न ज़माने कि दूरी थी,
न कोई मजबूरी..
खुश थें हम अपने उस सपनों कि दुनिया में,
जहाँ हर तरफ खुशियों के चिराग जगमगा रहे थे…
एक दुसरे को बस हम देखे जा रहे थे,
अलफ़ाज़ हमारे आखों से बयां हो रहे थे..
समंदर से तो मैं वाकिफ हूँ,
लेकिन वो आँखें कुछ ज्यादा गहरी हैं,
जिनमे मैं डूब जाया करता हूँ..
कल सपने में न जाने कितनी बार,
उन आँखों में डूब के वापस आया था मैं…
पर,
खुली जो आँख तो न तुम थी,
न वो ज़माना ,
और न वो सपना…
दहकती आग थी, तन्हाई थी और मैं था..
उस हसीं सपने कि शायद,
सच होने कि कोई गुंजाइश नहीं.
कल रात फिर एक सपना देखा मैंने,
चांदनी रात में तुम चुपके से आयीं मेरे पास,
हम दोनों के बीच न ज़माने कि दूरी थी,
न कोई मजबूरी..
खुश थें हम अपने उस सपनों कि दुनिया में,
जहाँ हर तरफ खुशियों के चिराग जगमगा रहे थे…
एक दुसरे को बस हम देखे जा रहे थे,
अलफ़ाज़ हमारे आखों से बयां हो रहे थे..
समंदर से तो मैं वाकिफ हूँ,
लेकिन वो आँखें कुछ ज्यादा गहरी हैं,
जिनमे मैं डूब जाया करता हूँ..
कल सपने में न जाने कितनी बार,
उन आँखों में डूब के वापस आया था मैं…
पर,
खुली जो आँख तो न तुम थी,
न वो ज़माना ,
और न वो सपना…
दहकती आग थी, तन्हाई थी और मैं था..
उस हसीं सपने कि शायद,
सच होने कि कोई गुंजाइश नहीं.
बहुत गज्जब लिखे हो बच्चा एकदम डायरेक्ट from दिल से …
आपके सपने इतने हसीं कैसे होते हैं, कुछ गुर बतायें।
हसीं सपने और हसीं कविता वाह वाह.
आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .
* किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?
हाँ ! क्यों नहीं !
कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.
सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.
इसमें भी एक अच्छी बात है.
अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?
सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.
पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.
सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.
आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.
romantic!!!!
अभी, बहुत प्यारा है यह सपना।
मन को छू गये आपके भाव।
———
अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
🙂
दिल का दर्द बयां कर दिया तुमने…। लिखते रहो…।
टहलते हुए फिर यहाँ आ गए…तो याद आया, एक होमवर्क अब भी बाकी रखा है तुमने…पूरा होने का इंतज़ार है…:)