
एक सन्नाटा है
हवा एक सरगोशी सी कर रही है
पूछ रही है
ये हवा आज,
इस गहरे सन्नाटे में
तू आज चुप क्यों है..
कोई गीत क्यूँ नहीं सुनाता
कोई नज़्म क्यूँ नहीं पेश करताकौन सी पुरानी बातों को मुट्ठी में बंद करूँ,
कौन सा गीत सुनाऊं?
मैं भी तो इसी कशमकश में हूँ..
हर नज़्म आज रूठी है
हर गीत आज भूल गया हूँ
यादों के तो कई लम्हे कैद हैं आँखों में,
मगर आज वो यादें
क्यों गीत बनने से इन्कार कर रही हैं?ये मद्धम शीतल हवा आज
तुम्हारे लम्स सी गर्माहट लिए हुए है
कायनात के हर कोने से जैसे
तुम्हारी आवाज़ सुनाई देने लगी है..
इस सफेदपोश रात में
धीरे धीरे मैं खोते ही जा रहा हूँ कहीं..
चलने लग गया हूँ माजी की उन पगडंडियों पर
और अचानक चलते चलते
एक तूफ़ान उठा,
और
उन माजी की हसीन गलियों से ला पटक.
फेंक दिया मुझे फिर इस तनहा रात में..
जहाँ बस बेपनाह अँधेरा है
सन्नाटा है
और मैं हूँ !
waah lajawaab…kya alfaaz dhoondh nikaale hai…bahut khoob
तनी मनी हमहूँ काट छाँट किए हैं…ठीक लगे त बिचार करना…बाकी त मस्त है..
पूछ रही है ये हवा आज,
इस गहरे सन्नाटे में तू आज चुप क्यों है..
-पूछ रही है ये हवा आज
इस गहरे सन्नाटे में तू चुप क्यों है.
कौन सी पुरानी बातों को मुट्ठी में बंद करूँ,
कौन सा गीत पेश करूँ, मैं भी तो इसी कशमकश में हूँ..
-किस पुरानी बात को मुट्ठी में बंद करूँ
कौन सा गीत गुनगुनाऊँ, मैं तो ख़ुद भी इसी कशमकश में हूँ.
ये मद्धम शीतल हवा आज तुम्हारे लम्स सी गर्माहट लिए हुए है.,,
-ये मद्धम सर्द हवा, आज तुम्हारे लम्स की गर्माहट लिए है
अचानक ज्वारभाटा सा, एक तूफ़ान उठा,
उन माजी की हसीन गलियों से ला पटक.
फेंक दिया मुझे फिर इस तनहा रात में..
जहाँ बस बेपनाह अँधेरा है, और सन्नाटा..
-अचानक एक ज़लज़ला सा, तूफान सा उठा
उन माज़ी की हसीन गलियों से
फेंक गया मुझे फिर इस तारीक तन्हा रात में
जहाँ बस बेपनाह अंधेरा है, और है सन्नाटा.
वाह! बहुत उम्दा!
very good very good
i loved it !!
सुंदर भाव लिए रचना |बहुत अच्छी लगी
आशा
रचना में अच्छे भाव हैं … चित्रण भी ग़ज़ब का है …
मैं भी इसी कशमकश में हूँ की क्या लिखूं…बहुत सुन्दर!
बहुत सुन्दर है ये कविता